Tarksheel Bharat
188 subscribers
121 photos
5 links
बदलाव की संस्कृति के निर्माण के लिये!
Download Telegram
आज (5 सितंबर) गौरी लंकेश का शहादत दिवस, आइए जाने उनके उन विचारों के बारे में जिसके चलते उन्हें मार दिया गया।

“मैं हिंदुत्व की राजनीति की निंदा करती हूं और जाति व्यवस्था की भी, जो हिंदू धर्म का हिस्सा मानी जाती है। इसके कारण मेरे आलोचक मुझे हिंदू-विरोधी बताते हैं। परंतु मेरा यह मानना है कि एक समतावादी समाज के निर्माण के लिए जो संघर्ष बासवन्ना और आंबेडकर ने शुरू किया था उसे आगे बढ़ाना मेरा कर्तव्य है और जितनी मेरी शक्ति है उतना मैं कर रही हूं।”

— गौरी लंकेश (साक्षात्कार, उद्धृत सिंथिया स्टीफेन)

“मनुवादियों ने बहुजनों के समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास को अपने हिसाब से तोड़ा-मरोड़ा। हमें इस इतिहास पर पड़े धूल-धक्कड़ को झाड़ना पड़ेगा, पौराणिक झूठों का पर्दाफाश करना पड़ेगा और अपने लोगों तथा अपने बच्चों को सच्चाई बतानी पड़ेगी। यही एकमात्र रास्ता है, जिस पर चल कर हम अपने सच्चे इतिहास के दावेदार बन सकते हैं।"

— गौरी लंकेश (वेब पोर्टल बैंगलोर मिरर में 29 फरवरी, 2016)

“लिंगायत बासवन्ना और शरणों के अनुनायी हैं। जिनका दर्शन और विचार उनके हजारों वचनों में प्रकट होते हैं। इन वचनों में वेदों, शास्त्रों, स्मृतियों और उपनिषदों को खारिज किया गया। बासवन्ना वर्ण व्यवस्था पर आधारित जाति व्यवस्था को भी खारिज करते हैं। वे कर्म-फल के सिद्धांत को रद्द करते हैं, और इस पर आधारति पाप-पुण्य की अवधारणा को भी खारिज करते हैं। इसके साथ ही वे इस पाप-पुण्य के सिद्धांत पर आधारित स्वर्ग-नरक की अवधारणा को भी अस्वीकार करते हैं। बासवन्ना मंदिरों और मूर्तियों की पूजा से घृणा करते हैं। वे शिव के लैंगिक लिंग के प्रतीक को अस्वीकार करते हैं, उसकी जगह इस्था लिंग (इस्था लिंग) को स्वीकार करते हैं, जो व्यक्ति की अन्तःकरण का प्रतीक है। वे कर्म को ही पूजा मानते हैं। जाति और लिंग के आधार पर भेदभाव के खिलाफ थे। वे अंधविश्वासों से घृणा करते थे। बासवन्ना ने संस्कृति भाषा की उपेक्षा की, जिसे बहुत कम लोग समझते थे। उन्होंने कन्नड़ में लोगों को संबोधित किया। सच बात तो यह है कि बासवन्ना और सभी शरणों ने हिंदू धर्म की हर चीज को खारिज करते थे और उसके खिलाफ विद्रोह किया।”

— गौरी लंकेश (मेकिंग सेन्स ऑफ लिंगायत वरसेस वीरशैव डिवेट, यह लेख मूल रूप में 8 अगस्त 2017 के प्रकाशित, द वायर ने 5 सितंबर 2017 को पनुर्प्रकाशित किया।)

“आंबेडकर ब्राह्मणों का इस बात के लिए उपहास उड़ाते हैं कि उन्होंने अपने देवताओं को दयनीय कायरों के एक समूह के रूप में प्रस्तुत किया है। वे कहते हैं कि हिंदुओं के सारे मिथक यही बताते हैं कि असुरों की हत्या विष्णु या शिव द्वारा नहीं की गई है, बल्कि देवियों ने किया है। यदि दुर्गा (या कर्नाटक के संदर्भ में चामुंडी) ने महिषासुर की हत्या की, तो काली ने नरकासुर को मारा। जबकि शुंभ और निशुंभ असुर भाईयों की हत्या दुर्गा के हाथों हुई। वाणासुर को कन्याकुमारी ने मारा। एक अन्य असुर रक्तबीज की हत्या देवी शक्ति ने की। आंबेडकर तिरस्कार के साथ कहते हैं कि “ऐसा लगता है कि भगवान लोग असुरों के हाथों से अपनी रक्षा खुद नहीं कर सकते थे, तो उन्होंने अपनी पत्नियों को, अपने आप को बचाने के लिए भेज दिया।”

— गौरी लंकेश (वेब पोर्टल बैंगलोर मिरर में 29 फरवरी, 2016, RECLAIMING MAHISHASURA)

“हमारे प्रधानमंत्री (मोदी) जब मुंह खोलेंगे, झूठ ही बोलेंगे।”
(गौरी लंकेश मोदी को ‘बूसी बूसिया’ लिखा करती थीं।)

“झूठ की फैक्ट्रियां ज्यादातर मोदी भक्त ही चलाते हैं।”
(गैरी लंकेश पत्रिके की अंतिम संपादकीय)

“कर्नाटक को जलाने आए, भगवाधारी गंजे (अमित शाह) की कहानी”

(30 अगस्त 2017, गौरी लंकेश पत्रिका की कवर स्टोरी)

विस्तार से लिंक खोलकर पढ़ें —

https://janchowk.com/zaruri-khabar/shaheed-gauri-lankesh-is-an-important-link-in-the-progressive-bahujan-thinking-tradition-of-kannada