समकालीन हस्तक्षेप
514 subscribers
11 files
यह एक पीयर-रिव्यूड त्रैमासिक शोध-पत्रिका है। इसका ISSN: 2277-7857 तथा SJIF 2023 = 7.858 है।
वेबलिंक~ https://www.hastakshep.co.in
फेसबुक लिंक~ www.FB.com/hastakshep
Download Telegram
प्रेम दिवस

जब हम मिले
हमारे मध्य दोस्ती थी
जब हम बिछड़े
हमारे मध्य प्रेम था।

हम दोनों एक साथ पड़े थे
प्रेम में
किन्तु प्रेम करना
मैंने तुम्हीं से सीखा।

तुम्हें छेड़ते हुए मैं चिल्लाया -
वे लड़कियाँ कितनी सुंदर हैं
तुमने आहिस्ता से कहा -
उन लड़कों में तुम कितने सुंदर हो।

मैंने तुमसे
तुम्हें चूमने की अनुमति माँगी
जैसे माँगता है एक बच्चा
बाहर खेलने जाने की अनुमति
अपनी माँ से

तुम्हें चूमने से ठीक पहले
मैंने चूमा
अपनी माँ का माथा

मैं तुमसे तुम्हारा
वर्तमान का प्रेम चाहता था
तुम मुझसे मेरा
भविष्य का प्रेम चाहती थी
और हमारा प्रेम
कहीं भूत में रह गया

हर बार हम इसी बात पर
बात करते हैं
कि अब हमें बात करना
बंद कर देना चाहिए

तुम जब पहली बार लौटी
मेरा घर धुएँ से भरा था
तुम जब आख़िरी बार लौटोगी
मेरा घर किताबों से भरा होगा

तुम्हारे जाने और लौटने के मध्य
मेरा प्रेम तुम्हारे लिए
और भी गहरा हो गया

मैं वो सारा प्रेम
जो तुमसे न कर सका
मैंने किया है अपनी किताबों से

— अज्ञात

❣️हैप्पी_वेलेंटाइन_डे🌹
👍2👎1
तुम्हारे इश्क़ को लौटना था

तुम्हारे इश्क़ को लौटना था
बहुत पहले लौटना था
जैसे लौटते हैं
खोए हुए लोग खदानों से
आँगन में लौटती है जैसे चमकीली धूप

तुम्हारे इश्क़ के सारे बाज़ार ठंडे थे
बहुत पहले लौटना था
जब :
काँच के टुकड़े को आईना कहा
निगाह के दरिया को आब कहा
तब :
सदमा मुझे जो मिला
ख़ामोशी से खिले लब पर
ज़िंदगी की राह में बहुत पहले लौटना था

तुम्हारे इश्क़ के तारों को उजास भरना था
बहुत पहले लौटना था
यह बाज़ार-ए-इश्क़ के
सभी अफ़सानों का दम टूटना ही था
डाकिए से हर चिट्ठी को
तुम्हारी ओर लौटना ही था
इश्क के मौलिक प्रेम पत्रों को जलना ही था
इस तड़पन से भरे दिल का टूटना ही था

तुम्हारे इश्क़ को लौटना था
बहुत पहले लौटना था...

— अनुभूति गुप्ता
मैं झुकता हूँ
दरवाज़े से बाहर जाने से पहले
अपने जूतों के तस्मे बाँधने के लिए मैं झुकता हूँ
रोटी का कौर तोड़ने और खाने के लिए
झुकता हूँ अपनी थाली पर
जेब से अचानक गिर गई क़लम या सिक्के को उठाने को
झुकता हूँ

झुकता हूँ लेकिन उस तरह नहीं
जैसे एक चापलूस की आत्मा झुकती है
किसी शक्तिशाली के सामने
जैसे लज्जित या अपमानित होकर झुकती हैं आँखें

झुकता हूँ
जैसे शब्दों को पढ़ने के लिए आँखें झुकती हैं
ताक़त और अधीनता की भाषा से बाहर भी होते हैं
शब्दों और क्रियाओं के कई अर्थ

झुकता हूँ
जैसे घुटना हमेशा पेट की तरफ़ ही मुड़ता है
यह कथन सिर्फ़ शरीर के नैसर्गिक गुणों
या अवगुणों को ही व्यक्त नहीं करता
कहावतें अर्थ से ज़्यादा अभिप्राय में निवास करती हैं।

— राजेश जोशी
👍3🥰1
आपसी मनमुटाव व द्वंद को उकेरती भावपूर्ण कविता
______

मेरी छवि औरों के कहने,
से मत कभी बनाओ तुम।
बैठो पास हमारे आकर,
थोड़ा सा बतियाओ तुम।

जिसने जैसा कहा मुझे,
तुमने क्यों वैसा मान लिया।
परखे बिन ही तुमने मुझको,
कैसे इतना जान लिया।
गांठ न बांधो मन में कोई,
मन से मन का सार कहो।
होंगे जब संवाद मदिर मिट,
जायेंगे सब रार अहो।

सीधे साधे रिश्तों को अब,
इतना मत उलझाओ तुम।

लाख बुरा हो कोई लेकिन,
कुछ तो अच्छाई होगी।
छोटा-मोटा झूठ सही पर,
थोड़ी सच्चाई होगी।
सब तो अपके मन के जैसे,
यहाँ नहीं हो जायेंगे।
हम भी सबके मन के जैसे,
कभी नहीं हो पाएंगे।

हर्षित, उल्लासित हो होकर
अपना नेह लुटाओ तुम।

द्वेष दमन कर मन से अपने,
प्रेमिल पुष्प खिलाना हैं।
जीवन होगा सरल हमारा
प्रिय सबके बन जाना हैं।
दुश्मन कोई मिले तुम्हें यदि,
तो तटस्थ तुम हो जाना।
होकर के निर्भीक गलत को,
सिर्फ गलत कहते जाना।

औरों का सम्मान करो जी,
खुद का मान बढ़ाओ तुम।

— प्रीति कुशवाहा
👍2
लकीरें बहुत अजीब होती हैं।
खाल पर खिंच जाये,
...तो खून निकाल देती हैं।
और ज़मीन पर खिंच जाये,
...तो सरहद बना देती है।

– मशाल खान

एक शहीद पाकिस्तानी युवा जिसकी ईशनिंदा के आरोप में हत्या कर दी गई थी।
👍4
इराकी-अमेरिकी कवि दुन्या मिखाइल की इक्कीस कविताएं

(1)

कछुए की तरह
घूमती रहती हूं मैं
यहां से वहां
अपनी पीठ पर लादे हुए अपना घर।

(2)

दीवार पर टंगा आईना
नहीं दिखाता उनमें से किसी भी चेहरे को
जो गुज़रते हैं उसके सामने से।

(3)

मृतक
चन्द्रमा जैसे होते हैं
पीछे छोड़ कर पृथ्वी को
वे दूर निकल जाते हैं।

(4)

ओह, नन्हीं चींटियो,
कैसे आगे बढ़ती रहती हो तुम
पीछे मुड़ कर देखे बिना।
काश मैं उधार ले पाती तुम्हारे ये पांव
केवल पांच मिनटों के लिये भी!

(5)

हम सभी पत्ते हैं शरद ऋतु के
हर समय गिरने को तैयार।

(6)

मकड़ी अपना घर ख़ुद से बाहर ही बनाती है।
वह कभी भी उसे नहीं कहती निर्वासन।

(7)

मैं कबूतर नहीं हूं
कि याद रख सकूं अपने घर का रास्ता।

(8)

ठीक इसी तरह,
उन्होंने गट्ठर बनाया हमारे हरित वर्षों का
एक भूखे भेड़ की भूख मिटाने के लिये।

(9)

बेशक आप 'प्यार' शब्द को देख नहीं पायेंगे
मैंने पानी पर लिखा था उसे।

(10)

पूरा चांद
एक शून्य की तरह दिखायी देता है
जीवन गोल है
अपनी परिणति में।

(11)

दादा ने देश छोड़ा था एक सूटकेस के साथ
पिता ने ख़ाली हाथ छोड़ा
पुत्र ने छोड़ा हाथों के बिना ही।

(12)

नहीं, मैं ऊब नहीं गयी हूं तुमसे
चन्द्रमा भी तो आता ही है बिला नागा हर रोज़!

(13)

उसने अपने दर्द का चित्र बनाया :
एक रंगीन पत्थर
भीतर समुद्र की अतल गहराई में।
मछलियां गुज़रती हैं वहां से,
वे उसे छू नहीं सकतीं।

(14)

वह बिल्कुल सुरक्षित थी
अपनी मां के गर्भ की गहराइयों में।

(15)

लालटेनें रात की अहमियत जानती हैं
और वे कहीं अधिक धैर्यशील हैं
बनिस्बत सितारों के।
वे टिकी रहती हैं सुबह होने तक।

(16)

पृथ्वी इतनी साधारण है
कि आप एक आंसू या एक हंसी के साथ
उसकी क़ैफ़ियत दे सकते हैं।

पृथ्वी इतनी जटिल है
कि उसकी क़ैफ़ियत देने के लिये
आपको एक आंसू या एक हंसी की ज़रूरत पड़ सकती है।

(17)

जो संख्या देख पा रहे हैं आप
वह अनिवार्य रूप से बदल जायेगी
अगले ही पासे के साथ।
ज़िन्दगी नहीं दिखाती अपनी सारी शक़्लें
एकबारगी।

(18)

सुहाना पल समाप्त हो चुका है।
मैं एक घंटे बिता चुकी
उस पल के बारे में सोचते हुए।

(19)

तितलियां पराग कण लाती हैं
अपने नन्हें पांवों के साथ,
और उड़ जाती हैं।
फूल ऐसा नहीं कर पाते।
इसीलिये इसकी पत्तियां होती हैं स्पन्दित
और इसके मुकुट
सिक्त रहा करते हैं आंसुओं से।

(20)

हमारे कितने ही आदिवासी साथी
युद्ध में मारे गये।
कुछ स्वाभाविक मौत मर गये।
उनमें से कोई भी ख़ुशी के मारे नहीं मरा।

(21)

जनता चौक पर खड़ी वह औरत
ताम्बे से बनी है।
वह बिकाऊ नहीं है।

(अंग्रेज़ी से अनुवाद- राजेश चन्द्र, 8 अप्रैल, 2018)
राजनीति में हिस्सा न लेना भी एक प्रकार की राजनीति होती है क्योंकि जब आप दो विकल्पों, विचारों अथवा विषयों में से कभी भी और कोई भी एक विकल्प चुनते हैं तब आप राजनीति कर रहे होते हैं।

इसलिए राजनीति में हिस्सा न लेने का परिणाम केवल यही नहीं कि अयोग्य लोग हम पर शासन करते हैं बल्कि हम विषयवस्तु को अनदेखा करके खुद की हार स्वीकारते हैं तथा अयोग्य को जीताते हैं।

कोई भी सरकार, व्यक्ति जो सत्ता पर काबिज़ हो जाता है, वह अपनी जेब से कुछ नहीं देता है बल्कि इस देश में मौजूदा संसाधनों के उपयोग से हासिल पूंजी को अलग–अलग स्कीम से जनता में वितरित करते हैं।

देश की पूंजी का सही वितरण हो इसके लिए आवश्यक है एक पारदर्शी, ईमानदार तथा जवाबदेह सरकार का अन्यथा चार के चालीस और चालीस से चार सौ बीस होता रहेगा तथा जनता भ्रम में चलती रहेगी

जब कोई नेता वोट खरीदते हैं तो इसका सीधा सा कारण है कि देश के रिसोर्सेज का दुरुपयोग किया गया है और आगे भी जमकर होगा क्योंकि उसकी भरपाई चार सौ बीस करके ही सम्भव है।

अच्छे नागरिकों को वोट की क़ीमत समझनी चाहिए ताकि बुरे नेता और बुरी सरकारें पैदा न हो सके। राजनीति में नज़र रखें, यह आपकी रोज़ी, रोटी, नौकरी, पेशा, वजूद और भविष्य सब तय करती है।

— आर. पी. विशाल
निष्पक्ष सिर्फ पत्थर हो सकता है
--------------

तुमने मेरी उंगलियाँ पकड़ कर चलना सिखाया था पिता
आभारी हूं, पर रास्ता मैं ही चुनूंगा अपना

तुमने शब्दों का यह विस्मयकारी संसार दिया गुरुवर
आभारी हूँ, पर लिखूंगा अपना ही सच मैं

मैं उदासियों के समय में उम्मीदें गढ़ता हूँ
और अकेला नहीं हूँ बिलकुल
शब्दों के सहारे बना रहा हूँ पुल इस उफनते महासागर में

हजारो-हज़ार हाथों में, जो एक अनचीन्हा हाथ है, वह मेरा है
हज़ारो-हज़ार पैरों में जो एक धीमा पाँव है, वह मेरा है
थकान को पराजित करती आवाजों में
एक आवाज़ मेरी भी है शामिल
और बेमक़सद कभी नहीं होती आवाजें...

निष्पक्ष सिर्फ पत्थर हो सकता है उसे फेंकने वाला हाथ नहीं
निष्पक्ष कागज हो सकता है कलम के लिए कहाँ मुमकिन है यह?

मैं हाड़-मांस का जीवित मनुष्य हूँ
इतिहास और भविष्य के इस पुल पर खड़ा
नहीं गुज़ार सकता अपनी उम्र
नियति है मेरी चलना
और मैं पूरी ताक़त के साथ चलता हूँ भविष्य की ओर

— अशोक कुमार पाण्डेय
👍5
हिन्दी दिवस बीता है, लेकिन यह क़िस्सा सुन लीजिए।

कोपनहेगन में था। बारिश हो रही थी और नक़्शे में रेलवे स्टेशन पास ही कहीं दिखा रहा था पर समझ नहीं आ रहा था। एक भारतीय दिखने वाला नवयुवक दिखा। अंग्रेज़ी में पूछा, उसने अंग्रेज़ी में बताया और मुस्कुराकर पूछा- You are here for the first time?

मैंने हाँ की मुद्रा में सर हिलाकर उससे पूछा- Are you Indian? उसने मुस्कुराकर सर हिलाया तो मैंने हिन्दी में कुछ कहा। उसने अंग्रेज़ी में कहा कि मैं तमिलनाडु से हूँ और मुझे ठीक से हिन्दी नहीं आती। मैंने अंग्रेज़ी में ही उससे कहा कि मुझे तमिल तो एकदम नहीं आती। दोनों मुस्कुराये और विदा ली।

तो बस याद रखना चाहिए कि जिन्हें हिंदी नहीं आती वह भी भारतीय हैं। राष्ट्रभाषा का गर्व इस तथ्य पर राख डालने के लिए नहीं करना चाहिए।

— अशोक कुमार पाण्डेय
🥰1
Samkalin Hastakshep (March 2023).pdf
19.4 MB
समकालीन हस्तक्षेप (मार्च 2023)
Samkalin Hastakshep (April 2023).pdf
19.2 MB
समकालीन हस्तक्षेप (अप्रैल 2023)
Samkalin Hastakshep (May 2023).pdf
9.5 MB
समकालीन हस्तक्षेप (मई 2023)
Samkalin Hastakshep (June, 2023).pdf
24.1 MB
समकालीन हस्तक्षेप (जून 2023)
Hastakshep Vol. 17, Issue 1, July-September, 2023.pdf
31.1 MB
समकालीन हस्तक्षेप (जुलाई-सितंबर 2023)
Samkalin Hastakshep 17 (2).pdf
32 MB
समकालीन हस्तक्षेप (अक्टूबर-दिसंबर 2023)
Samkalin Hastakshep 17(3).pdf
47.2 MB
समकालीन हस्तक्षेप (जनवरी-मार्च 2024)
समकालीन हस्तक्षेप 17 (4).pdf
48.7 MB
समकालीन हस्तक्षेप (अप्रैल-जून 2024)
समकालीन हस्तक्षेप 18 (1).pdf
37.7 MB
समकालीन हस्तक्षेप (जुलाई-सितंबर 2024)
हस्तक्षेप 18 (2).pdf
29.4 MB
समकालीन हस्तक्षेप (अक्टूबर-दिसंबर 2024)
hastakshep 18(3).pdf
32.3 MB
समकालीन हस्तक्षेप (जनवरी-मार्च 2025)